रूबरू मिलने का मौका,
हर रोज नही मिलता.....
इसलिए
शब्दों से छूने की कोशिश कर लेता हूं.....!!!!!
लफ़्ज़ मैने भी चुराए हैं कई जगह से,
कभी तेरी मुस्कान से कभी तेरी नज़र से...!
मोहब्बत ए इश्क मैं काजी की जरूरत ही क्या,जब कबूल हो हम एक दूसरे को।
अपने हाथों की लकीरें देखीं हैं मैंने ग़ौर से,,
ये तो सीधी सादी हैं, फिर ज़िंदगी क्यों पेचीदा है ??
*रिश्ते, प्यार और मित्रता हर जगह पाये जाते हैं, परन्तु ये ठहरते वहीं हैं - जहां पर इन्हें आदर मिलता है ....
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