मेरी हिचकियाँ गवाह हैं
नींद उसकी भी तबाह है......
जो निभा दे साथ जितना उस साथ का शुक्रिया.
छोड़ दे जो बीच मे उस हाथ का भी शुक्रिया...!
बहुत लम्बी ख़ामोशी से ग़ुज़री हूँ
मैं किसी से कुछ कहने की तलाश में...।।
दो गज़ ज़मीन दे कर भेजा था मुझे
मैंने ख्वाइश पूरी कायनात की कर ली ।।
अब छोड़ दिया है “इश्क़” का “स्कूल” हमने भी
हमसे अब “मोहब्बत” की “फीस” अदा नही होती !
ज़मींदोज़ कर दी ख्वाहिशें अपनी..!
फिर जाने क्यूँ ख़ालीपन नहीं जाता..!!
सफ़र तो बीत जायेगा..... बस ये समय नहीं कटता.....!!!!
ज़िन्दगी कुछ इस तरह खाली हुई अपनी..!
जाने कितनी पी गए और प्यास बाक़ी है..!!
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